भारत में विदेशी आक्रमण
उत्तर-पश्चिम भारत में कंबोज और गांधार जैसी कई छोटी रियासतें थीं, जिन्होंने आपस में संघर्ष किया था। इस क्षेत्र में मगध के समान कोई शक्तिशाली राज्य नहीं था, जिसमें हिंदुकुश से होकर आसानी से प्रवेश किया जा सके।
ईरानी आक्रमण – 518 ईसा पूर्व
ईरानी शासक डेरियस ने 516 ईसा पूर्व में उत्तर-पश्चिम भारत में प्रवेश किया और पंजाब, सिंधु के पश्चिमी भाग और सिंध पर अधिकार कर लिया। यह ईरान का 20 वां प्रांत था और उपजाऊ भूमि के कारण ईरान के कुल राजस्व में 1/3 भाग का योगदान देता था। डेरियस के उत्तराधिकारी ज़रसेस ने ग्रीक के खिलाफ युद्ध में बड़ी संख्या में भारतीयों को शामिल किया।
संपर्क के परिणाम
व्यापार और वाणिज्य को प्रोत्साहन।
भारत में खरोष्ठी लिपि का आगमन।
अशोक के शिलालेखों पर ईरानी प्रभाव स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है।
ईरानी आक्रमण के कारण अंतत: सिकन्दर का आक्रमण हुआ।
सिकन्दर (एलेक्ज़ेंडर) का आक्रमण
इसने 333 ईसा पूर्व और 331 ईसा पूर्व में डेरियस, ज़रसेस वंश के अंतिम राजा को हराया। पर्सियाई शासक के क्षेत्र पर अधिकार करने के बाद, सिकंदर ने 327 ईसापूर्व में पूर्वी अफगानिस्तान में हिंदुकुश पर्वतों को पार किया।
ईरान पर विजय पाने के पश्चात, सिकंदर ने खैबर दर्रे से होते हुए भारत में प्रवेश किया। तक्षशिला के शासक, अम्भी ने जल्द ही समर्पण कर दिया। उसका सामना पोरस से झेलम नदी पर हुआ जहां उसने हाइडेस्पीज़ के युद्ध में पोरस को पराजित किया लेकिन बाद में उसने राज्य लौटा दिया। सिकंदर व्यास नदी तक गया लेकिन उसकी सेना ने आगे जाने से मना कर दिया। वह 326-325 ईसा पूर्व तक भारत में रहा जिसके बाद उसे लौटना पड़ा।
आक्रमण का परिणाम
चार विशिष्ट स्थल और जल मार्गों से भारत और ग्रीक के मध्य सीधा संपर्क स्थापित हुआ था जिससे व्यापार और वाणिज्य में बढ़ोत्तरी हुई थी।
स्थापित शहर: काबुल में एलेक्ज़ेंड्रिया, झेलम के निकट बोकेफला, सिंध में एलेक्ज़ेंड्रिया
सिकंदर के आक्रमणों ने हमें उसके अभियान के स्पष्ट तिथिवार दस्तावेज, महत्वपूर्ण भौगोलिक विवरण और भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था के बारे में जानकारी प्रदान की है।
मध्य एशिया संपर्क और उनके परिणाम
इंडो-ग्रीक
200 ईसा पूर्व में बैक्टीरियाई ग्रीकों द्वारा आक्रमणों होने शुरू हुए जिन्हें सिथीयन जनजाति ने हराया था।
1) मिनेंडर (165-145 ईसापूर्व) सबसे विख्यात शासक हुआ जिसने बाद में नागसेन की शिक्षा से बौद्ध धर्म स्वीकार किया। मिनेंडर के प्रश्नों को मिलिंदपन्हों में संकलित किया गया है।
2) भारत में सोने के सिक्के को सर्वप्रथम इंडो-ग्रीक ने जारी किया था और संभवत: वे प्रथम स्वर्ण सिक्के जारी करने वाले शासक थे जिसमें सिक्कों का उनके राजाओं से सीधा संबंध देखा जा सकता है।
3) इन्होने हेलेनिस्टक कला की विशेषता को लेकर आए जिसके जरिए गांधार कला शैली का विकास हुआ।
शक (1 - 4 ईसवीं शताब्दी)
1) शक या सीथियन ने इंडो-ग्रीक को प्रतिस्थापित किया। शकों की पांच शाखाऐं थी और उन्होंने एक बड़े क्षेत्र पर शासन किया।
2) विक्रम संवत् की शुरूआत 57 ईसापूर्व में हुई थी जब एक उज्जैन के एक स्थानीय राजा ने शकों को पराजित कर विक्रमादित्य की उपाधि ग्रहण की थी।
3) रुद्रदामन प्रथम (130-150 ईसवी) एक प्रसिद्ध राजा था जिसने पश्चिमी भारत पर शासन किया। उसने काठियावाड़ में सुदर्शन झील का पुनरोद्धार किया।
पार्थियन
ये मूलत: ईरान से थे और उन्होने उत्तर-पश्चिमी भारत में शकों को हराया।
गोंडोफेरेंस के समय में, सेंट थॉमस इसाई धर्म के प्रसार के लिए भारत आए थे।
कुषाण
ये मध्य एशिया के चरवाहे थे जिन्होने ओक्सस से गंगा तक शासन किया।
कडफिसेस I और II ने 50 ईसवीं से 28 साल तक शासन किया। इन्हें कनिष्क ने हराया।
पेशावर इनकी प्रथम राजधानी और मथुरा दूसरी राजधानी थी।
कनिष्क ने 78 ईसवी में शक संवत् की शुरुआत की थी।
कनिष्क ने कश्मीर में बौद्ध संगति आयोजित कराके बौद्ध धर्म को संरक्षण प्रदान किया जहां बौद्धों की महायान शाखा का अंतिम स्वरूप तय हुआ।
मध्य एशियाई सपंर्क के प्रभाव
स्थापत्य और काव्य कला में उन्नति।
इनके पास बेहतर घुड़सवार सेना थी।
वे स्वयं को भारत का अभिन्न अंग मानते थे।
सरकार की क्षत्रप पद्धति का विकसित हुई।
इन्होने सैन्य प्रशासक नियुक्त किए जिन्हें स्ट्रैटीगोस कहते थे।
बौद्ध धर्म की महायान शैली का विकास बौद्ध धर्म को गंधार और मथुरा कला शैली के साथ हुआ।
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