<---भीमबेटका--->
>भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त के रायसेन जिले में स्थित एक पुरापाषाणिक आवासीय पुरास्थल है।
>यह आदि-मानव द्वारा बनाये गए शैलचित्रों और शैलाश्रयों के लिए प्रसिद्ध है।
>इन चित्रों को पुरापाषाण कालसे मध्यपाषाण काल के समय का माना जाता है।
> इनकी खोज
वर्ष १९५७-१९५८ में डाक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर द्वारा की गई थी।
>जुलाई २००३ में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थलघोषित किया।
>यहाँ पर अन्य पुरावशेष भी मिले जिनमें प्राचीन किले की दीवार, लघुस्तूप, पाषाण निर्मित भवन, शुंग-गुप्त कालीनअभिलेख, शंख अभिलेख और परमार कालीन मंदिर के अवशेष सम्मिलित हैं।
>ये गुफाएँ मध्य भारत के पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विन्ध्याचल की पहाड़ियों के निचले छोर पर हैं।इसके दक्षिण में सतपुड़ा की पहाड़ियाँ आरम्भ हो जाती हैं।
>यहाँ के शैल चित्रों के विषय मुख्यतया सामूहिक नृत्य, रेखांकित मानवाकृति, शिकार, पशु-पक्षी, युद्ध और प्राचीन मानव जीवन के दैनिक क्रियाकलापों से जुड़े हैं। चित्रों में प्रयोग किये गए खनिज रंगों में मुख्य रूप से गेरुआ, लालऔर सफेद हैं और कहीं-कहीं पीला और हरा रंग भी प्रयोग हुआ है।
>भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त के रायसेन जिले में स्थित एक पुरापाषाणिक आवासीय पुरास्थल है।
>यह आदि-मानव द्वारा बनाये गए शैलचित्रों और शैलाश्रयों के लिए प्रसिद्ध है।
>इन चित्रों को पुरापाषाण कालसे मध्यपाषाण काल के समय का माना जाता है।
> इनकी खोज
वर्ष १९५७-१९५८ में डाक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर द्वारा की गई थी।
>जुलाई २००३ में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थलघोषित किया।
>यहाँ पर अन्य पुरावशेष भी मिले जिनमें प्राचीन किले की दीवार, लघुस्तूप, पाषाण निर्मित भवन, शुंग-गुप्त कालीनअभिलेख, शंख अभिलेख और परमार कालीन मंदिर के अवशेष सम्मिलित हैं।
>ये गुफाएँ मध्य भारत के पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विन्ध्याचल की पहाड़ियों के निचले छोर पर हैं।इसके दक्षिण में सतपुड़ा की पहाड़ियाँ आरम्भ हो जाती हैं।
>यहाँ के शैल चित्रों के विषय मुख्यतया सामूहिक नृत्य, रेखांकित मानवाकृति, शिकार, पशु-पक्षी, युद्ध और प्राचीन मानव जीवन के दैनिक क्रियाकलापों से जुड़े हैं। चित्रों में प्रयोग किये गए खनिज रंगों में मुख्य रूप से गेरुआ, लालऔर सफेद हैं और कहीं-कहीं पीला और हरा रंग भी प्रयोग हुआ है।
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